पहिले पहिल हम कईनी,
छठी मईया व्रत तोहार ।
करिहा क्षमा छठी मईया,
भूल-चूक गलती हमार ।
छठ का व्रत करने वाला हर इंसान इस गीत से जुड़ा महसूस करता है. इस गाने से व्रत करने वाले ही नहीं बल्कि वो लोग भी जो व्रत तो नहीं करते लेकिन इस महापर्व में पूरी आस्था के साथ शामिल होते हैं, वो भी इसकी महिमा को महसूस करते हैं. इस गीत को सुनते ही हमारे जेहन में छठ महापर्व के दौरान होने वाले सारे rituals आखों के सामने घूम जाते हैं. घाटों पर रंग बिरंगे नए कपड़े पहने लोगों की भीड़, सिर पर गन्ना और पूजा की टोकरी लिए घाट पर जाते लोग, पानी में खड़ी होकर सूर्य को अर्घ्य देते व्रती।
हिन्दू धर्म में ज्यादातर व्रत त्यौहार Scientific Temperament वाले रहे हैं. हालांकि छठ महापर्व को प्रकृति आधारित उत्सव होने के चलते कई लोग उतना Religious Festival नहीं मानते बल्कि इसे एक Nature Festival ज्यादा मानते हैं. फिलहाल जो भी हो लेकिन इस त्यौहार में लोगों की बहुत ही आस्था है, इसलिए छठ पूजा भी कहां Scientific aspect से अछूता रह सकता है।
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छठ महापर्व को वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखा जाए तो षष्ठी तिथि को एक खास तरह का astronomic change होता है. असल में इस समय कुछ ऐसी परिस्थिति बन जाती है कि सूर्य की Ultra Violet Rays पृथ्वी पर सामान्य दिनों की तुलना में कुछ ज्यादा इकट्ठा होने लगती है. यहां बताना जरूरी है कि Ultraviolet Rays को मानव त्वचा के लिए हानिकारक माना जाता है। Ultraviolet Rays से धरती की ओजोन लेयर उनसे हमारी रक्षा करती है. लगातार बढ़ते प्रदूषण के चलते इसीलिए इसके खराब होने की बात बताई जाती है.
असल मुद्दे पर आते हैं। छठ पर्व के दौरान जब Ultraviolet Rays बढ़ चुकी होती हैं तो इनसे हमारी रक्षा करने के लिए छठ पूजा को काफी विशेष माना गया है. पूरी धरती को इससे काफी फायदा होता है, ऐसी कई इंटरनेशनल साइंटिफिक रिसर्च में ये बात सामने आ चुकी है की सूरज की रोशनी के साथ Ultraviolet Rays भी धरती के साथ-साथ चंद्रमा पर भी बढ़ती हैं, सूरज की रोशनी जब धरती पर पहुंचती है तो उसे पहले Atmosphere मिलता है और इसमें एंट्री करने के बाद उसे ionosphere मिलता है. Ultraviolet Rays को इस्तेमाल करके Atmosphere ऑक्सीजन कंपोनेंट की synthesis करके उसे Allotrope Ozone में बदल देता है. इस पूरी प्रोसेस से होता ये है कि सूरज की खतरनाक Ultra Violet Rays का ज्यादातर Part पृथ्वी के Atmosphere में ही absorbe कर लिया जाता है... पृथ्वी तक उसका बहुत छोटा पार्ट ही पहुंच पाता है, इससे सबसे बड़ा फायदा ये होता है कि नॉर्मल सिचुएशन में पृथ्वी पर जो भी Ultraviolet Rays पहुंचती हैं, उनका ह्यूमन बीइंग पर कोई खास बुरा प्रभाव नहीं पड़ता... इनकी क्वांटिटी इतनी होती है जिसे हम सहन कर सकते हैं.
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इससे ये स्पष्ट रूप से कहा जा सकता है कि नॉर्मल सिचुएशन में हम जैसे हैं मन पर उसका कोई बहुत ज्यादा नेगेटिव इफेक्ट नहीं पड़ता, बल्कि एक पॉजिटिव चीज ये होती है कि सूरज की धूप से कुछ इनफेक्टिव बैक्टीरिया जरूर मर जाते हैं इससे हमें काफी फायदा होता है और हमारी हेल्थ मेंटेन रहती है. छठ पूजा जैसी एस्ट्रोनॉमिकल सिचुएशन जब बनती है तो सूरज की Ultra Violet Rays चंद्रमा की Surface से Reflect होकर spherical refract होने के बाद पृथ्वी पर नॉर्मल से अधिक क्वांटिटी में पहुंच जाती हैं. Atmosphere के अलग-अलग लेवल से refract होकर Ultra Violet Rays Sunrise और Sunset के समय और भी ज्यादा dense हो जाती हैं, एस्ट्रोलॉजी की माने तो इस तरह की Phenomenon कार्तिक तथा चैत्र महीने की अमावस्या के 6 दिन बाद होती है. एस्ट्रोलॉजिकल कैलकुलेशंस के अनुसार होने के चलते इसका नाम कुछ और नहीं बल्कि छठ पर रखा गया है.
इसके अलावा विशेषज्ञ ये भी बताते हैं कि उगते हुए और डूबते हुए सूरज को अर्घ्य देने से हर तरह के रोग खत्म हो जाते हैं और इंसान निरोगी रहता है. इसके अलावा कहा तो ये भी जाता है कि इसके व्रत से दूसरी स्वास्थ्य समस्याओं से भी आदमी बचा रहता है. एक साइंटिफिक फैक्ट ये भी है कि दीपावली के बाद धीरे-धीरे सूरज की रोशनी धरती पर आना कम हो जाती है, इसलिए इस व्रत के जरिए शरीर में मतलब भर की एनर्जी को स्टोर कर लिया जाता है, ताकि बाद के ठंडे मौसम में उसका मुकाबला करने के लिए हमारा शरीर तैयार रहे, इसके अलावा सर्दियां आने पर चूंकि बॉडी में तरह-तरह के चेंज होने लगते हैं, इसका असर हमारे डाइजेशन सिस्टम पर भी पड़ता है, कहते हैं छठ व्रत करने से हमारी बॉडी और हमारा डाइजेशन सिस्टम सर्दियों के लिए तैयार हो जाता है.
इसके साथ-साथ शरीर की इम्युनिटी भी बढ़ जाती है. कुछ साल पहले जिस तरह से कोविड जैसी पेंडमिक ने दुनिया भर में अपना कहर बरपाया है, उसको देखते हुए इस तरह के व्रत की इंपॉर्टेंस और भी बढ़ जाती है, क्योंकि ये बिना किसी मेहनत के हमारे इम्यूनिटी लेवल में इजाफा करते हैं.
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