प्रीति सिंह
खाने के मामले में हर इंसान की अपनी पसंद होती है । किसी को मीठा पसंद होता है तो किसी को तीखा। किसी को मसालेदार तो किसी को सादा, लेकिन कुछेक व्यंजन ऐसे है जिसे हर उम्र के लोग पसंद करते हैं। जितना वो बच्चो को पसंद है उतना ही बड़े -बूढ़ों को भी। दरअसल उस व्यंजन की कुछ खासियत होती है. लोग अपने पसंद के हिसाब से उसे तीखा मीठा बना सकते हैं. वो जितना शाकाहारी लज़ीज़ होता है उतना ही मांसाहारी भी. तो चलिए जानते हैं वो कौन सा ऐसा व्यंजन है जो सबको पसंद आता है. जी हाँ, इस व्यंजन का नाम है बर्गर। ये व्यंजन दुनियाभर में स्वाद और सुविधा का प्रतीक बन चुका है।
वर्तमान में ये हर उम्र और संस्कृति के लोगों का पसंदीदा फ़ूड है। सॉफ्ट बन के बीच में रसीली पैटी, फ्रेश सब्जियां, मलाईदार चीज, और स्वादिष्ट सॉस का मिश्रण, बर्गर को हर occasion के लिए एक आइडियल फ़ूड बनाता है। चाहे वह अमेरिका का क्लासिक बीफ बर्गर हो या इंडिया का मसालेदार आलू टिक्की बर्गर हो, या फिर Veg Paneer Burger, यह हर स्वाद को लुभाने की क्षमता रखता है। पूरी दुनिया में स्ट्रीट फूड के स्टॉल से लेकर लग्जरी रेस्तरां तक, बर्गर ने अपने Variety and Taste के जादू से हर दिल में जगह बनाई है।
पिछले कुछ सालों में पूरी दुनिया में झटपट भूख मिटाने के लिए खाए जाने वाले फ़ूड की फेहरिस्त में बर्गर का नाम टॉप में आता है। वैसे बर्गर को हर कोई पसंद करता है, लेकिन ये बच्चो को कुछ ज़्यादा ही लुभाता है। आपने बाहर बच्चों को दो चीजे खाते सबसे ज़्यादा देखा होगा। पहला बर्गर और दूसरा फ्राइज। बच्चे फ्राइज भी बहुत पसंद करते हैं। फ़िलहाल आज हम फ्राइज की नहीं बल्कि बर्गर की बात करेंगे। हम जानेंगे बर्गर की हिस्ट्री के बारे में, और हम ये भी जानेंगे बर्गर कितना हेल्दी है। तो चलिए बर्गर की कहानी शुरू करते हैं और जानते है सबसे पहले कहाँ बना था बर्गर?
मीडिया रिपोर्ट्स और फ़ूड हिस्टोरियन के मुताबिक बर्गर का invention अमेरिका में हुआ था। अमेरिकन इस बात का दावा भी करते हैं। लेकिन अमेरिका के अलावा दो और देश चीन और रोम भी बर्गर पर अपना दावा ठोकते हैं। इस तरह देखे तो बर्गर के invention पर तीन देशों का दावा है। अब जब तीन देशों का दावा है तो शुरुआत चीन से करते हैं और जानते हैं कि वो किस आधार पर ये दावा करता है।
दरअसल कुछ साल पहले हफ़िंग्टन पोस्ट में बर्गर को लेकर एक रिपोर्ट छपी थी जिसमें कहा गया था कि जिस बर्गर की जाति को दुनिया अमेरिकी समझती है, दरअसल वह चाइनीज है। साल 2017 में छपी डेविड माइकल्स की किताब ‘द वर्ल्ड इज योर बर्गर’ के मुताबिक चीन में 2200 साल पहले बर्गर बना था। चीन के ‘क्विन’ dynasty ने बर्गर जैसा एक फ़ूड ईजाद किया। इसे ‘रोउ-जिया-मोउ’ कहते हैं। इसका शाब्दिक अर्थ है ‘बन के बीच रखा मीट’। इस फ़ूड में तमाम Spices में मिले पोर्क को बन के बीच में रखकर परोसा जाता है। इसे आसानी से ऐसे समझ सकते हैं कि इंडिया में जब सम्राट अशोक की तीसरी-चौथी पीढ़ी वर्ल्ड में बौद्ध धर्म का प्रचार कर रही थी, तब चीन वाले इस बर्गर को ‘आई एम लविन इट’ बोल रहे थे। तो बर्गर का सफर चीन में इस तरह शुरू हुआ था। अब रोम की तरफ चलते हैं और जानते है वहां बर्गर का सफर कब और कैसे शुरू हुआ और वो किस आधार पर बर्गर पर अपना हक़ जताता है।
दरअसल ancient roman book ‘एपिसियस’ में एक रेसिपी दी हुई है, जो बर्गर से मिलती है। इसी के आधार पर ये दावा किया जाता है। रेसिपी के अनुसार, मीट को पीसकर, उसमें शराब, मिर्च, पिसे चिलगोज़े और फ़िश सॉस मिलाते थे। इसके बाद उसकी टिक्की बनाकर उसे ब्रेड में रखकर खाते थे। ये शाही लोगों का खाना था और इस व्यंजन का नाम था ‘इसिकिया ओमेन्टाटा’ . बाद में जब रोमन ब्रिटेन में आए तो अपनी फास्ट फूड की परंपरा भी साथ लाए। उनके यहां दिनभर की मेहनत के बीच जल्दी से कुछ खाने का चलन था। और इसका नतीजा ये हुआ कि गर्मा-गरम खाना परोसने वाली थर्मोपोलिया नाम की दुकानें ही आगे चलकर फ़ास्टफूड कल्चर में बदल गईं। लंदन पहुंचकर बर्गर 'हैमबर्ग' हो गया। सन 1747 में लन्दन में इसे हैमबर्ग नाम मिला और सन 1802 में ऑक्सफ़ोर्ड डिक्शनरी में हैमबर्ग शब्द शामिल हुआ।
बर्गर एक देश से निकल कर दूसरे देश में अपनी जगह बना रहा था लेकिन उसके बनाने की विधि लगभग प्राचीन ही रही, हाँ कुछ Material यानी सामग्री जरूर बढ़ गई। जैसे 'हैमबर्ग' सॉसेज को मीट , Clove , black pepper, जायफल, गार्लिक , vinegar और रेड वाइन व रम में बनाया जाने लगा। इसे टोस्ट के साथ सर्व किया जाने लगा। सन 1885 में ब्रेड के बीच मीट बॉल रखकर इसे बनाया जाने लगा। बर्गर के इन्हीं पूर्वजों से जर्मनी के हैमबर्ग शहर में भी ब्रेड के बीच में मीटबॉल रखकर खाने की शुरूआत हुई। धीरे-धीरे हैमबर्ग स्टेक, हैमबर्गर कहलाने लगा और उसके बाद इसे बर्गर कहा जाने लगा । इंग्लिश में हैम ‘प्रोसेस्ड पोर्क’ को कहा जाता है, शायद इसलिए लंबे टाइम तक हैम की गलतफ़हमी रखने वाले बहुत से इंडियन बर्गर से दूरी बनाकर रखते थे।
चलिए अब बर्गर के मॉडर्न होने की कहानी जानते हैं।मतलब मेक्डॉनल्ड के बारे में जानते हैं, जिसने पूरी दुनिया का बर्गर से परिचय कराया। सन 1954 में 52 साल का एक सेल्समैन रे क्रॉक कैलिफ़ोर्निया के एक कैफे में मिल्कशेक मशीन बेचने पहुंचा। उसने खाना ऑर्डर किया और 1 मिनट से कम समय में उसके सामने बर्गर, फ़्रेंच फ़्राइज का लिफाफा और मिल्कशेक का गिलास रखा था। सभी चीज़ें ताज़ा और गर्म थीं। ये देख रे क्रॉक शॉक्ड रह गया। उसने रेस्त्रां चलाने वाले दोनों भाइयों डिक और मैक मेक्डॉनल्ड से पूछा कि उन्होंने खाने का इतना सामान इतनी जल्दी कैसे तैयार कर लिया? उन्होंने रे क्रॉक को बताया कि इसके लिए खास सिस्टम बनाया गया है। इसमें बर्गर के बन को सेंकने, बन पर कैचअप डालने, फिर उसे कागज में लपेटने जैसे हर काम के लिए एक टाइम लिमिट तय है। उनके किचन में काम करने वाले Employee डेली के प्रैक्टिस से इस काम में परफेक्ट हो गए हैं। इसलिए हर बार एक जैसा बर्गर झटपट तैयार हो जाता है। उस समय में भी मैक्डोनाल्ड भाइयों का कैफे खूब चलता था। उन्होंने उसकी कुछ ब्रांच भी खोल रखी थीं।
उस दिन उस सेल्समैन को समझ में आया कि उनके हाथ लॉटरी लगी है । उसने दोनों भाइयो को कहा कि वे एक कंपनी बनाकर इस मैक्डॉनल्ड्स को दुनिया भर में पहुंचाएंगे। दोनों भाई तैयार हो गए और फिर मैक्डॉनल्ड्स का सफर शुरू हुआ। कुछ सालो तक रे क्रॉक के साथ मैक्डॉनल्ड्स का काम पार्टनरशिप में चला लेकिन 1961 में रे क्रॉक, मैक्डॉनल्ड्स को खरीदकर इसके सीईओ बन गए। ये कितना फ़ेमस है इसे ऐसे जान सकते हैं कि मैक्डॉनल्ड्स बर्गर की पूरी कहानी पर हॉलीवुड में फाउंडर नाम से एक फिल्म भी बनाई जा चुकी है , जो उसके दिलचस्प सफर को बयां करती है।
मैकडोनाल्ड बर्गर की बात हो रही है तो उसके जोकर के बारे में भी बात करना जरूरी हो जाता है. हम सबने मैकडॉनल्ड्स के आउटलेट्स के बाहर लाल-सफ़ेद धारियों और पीला जंपसूट पहने एक जोकर को जरूर देखा होगा, जिसके फेस पर हमेशा स्माइल रहती है। इस जोकर का नाम रोनाल्ड है। आज भी बच्चों का ये पसंदीदा सेल्फी कॉर्नर होता है। आपको बता दें कि दुनिया भर में मैकडॉनल्ड्स की पहचान रहे रोनाल्ड को बच्चों की ही वजह से रिटायरमेंट भी लेना पड़ा था।
दरअसल साल 2011 में दुनिया भर के 550 से ज्यादा डॉक्टर्स और हेल्थ प्रोफेशनल्स ने इसके खिलाफ Campaign चलाया था । इन्होंने कहा था कि बच्चो को रोनाल्ड के जरिए अनहेल्दी फास्ट फूड के लिए अट्रैक्ट करना ठीक नहीं है। आप इसे समझ सकते हैं कि बर्गर अनहेल्दी फ़ूड की केटेगरी में आता है। तो चलिए बर्गर के ज्यादा खाने के साइड इफेक्ट्स के बारे में जान लेते हैं।
साल 2004 में एक डॉक्युमेंट्री फिल्म आई थी जिसका नाम था ‘सुपरसाइज मी’। इस डॉक्युमेंट्री में मॉर्गन स्परलॉक एक महीने तक दिन में तीन बार सिर्फ बर्गर और दूसरी चीज़ें खाये । दिन में वो दो किलोमीटर टहलते भी थे। बावजूद इसके उनका वेट एक महीने में 11 kg बढ़ गया। इसके साथ ही उनका कोलेस्ट्रॉल भी बढ़ा और उन्हें एंग्ज़ाइटी, मूड स्विंग और सेक्शुअल डिस्फ़ंक्शन की भी शिकायत हुई। मॉर्गन को अपनी इस बिगड़ी हुई सेहत को सुधारने में 14 महीने लग गए।
बर्गर खाने में चाहे जितना भी टेस्टी क्यों ना लगे, लेकिन ये सच है इसके सेवन से चढ़ने वाला मोटापा बहुत Slow speed से घटता है। आपको शायद मालूम ना हो लेकिन कई रिसर्च में ये कहा गया है कि बर्गर की लत भी लगती है। Saturated Trans Fat, शुगर और साल्ट का मिला-जुला असर हमारे भीतर इसकी लत पैदा कर सकता है। यह Addiction निकोटीन और कुछ मामलों में हेरोइन की Addiction जैसी हो सकती है। इसीलिए तो हमें कभी-कभी अचानक से महसूस होता है कि बस खाने के लिए एक बर्गर मिल जाए।
अगर आपको अक्सर बर्गर खाने का मन करता है, तो कोशिश करिए कि इसे घर पर हेल्दी तरीके से बनाये। फास्टफूड बनाना बहुत ही आसान होता है। बस आपको हेल्थ के नजरिए से कुछ बातों का ध्यान रखना होता है। मसलन बर्गर बनाने के लिए आटे का या होलवीट के बन इस्तेमाल करें। बन के बीच रखने वाले टिक्की को डीप फ्राई करने की जगह सेंके । मेयोनीज की जगह दूसरा Option आजमाएं। और हां, बर्गर में चीज़ का इस्तेमाल भी कम से कम करें तो सेहत के लिए अच्छा होगा।
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