टिफोला डेस्क
जलेबी का इतिहास (history of jalebi) -घर में कोई मेहमान आ जाये तो अधिकांश घरों में मेहमान को स्पेशल फील कराने के लिए सुबह नाश्ते में उसके सामने जलेबी और दही परोसी जाती है। मेहमान भी सुनहरी, कुरकुरी रसभरी टेढ़ी मेढ़ी जलेबी देख खुश हो जाता है। अमूमन भारतीय अपना दिन अच्छा बनाने के लिए सुबह नाश्ते में जलेबी खाना पसंद करते हैं। कोई इसे दही के साथ खाना पसंद करता है तो कोई इसे रबड़ी के साथ चाव से खाता है। बहुत से लोग ऐसे जो किसी भी समय जलेबी खा सकते हैं।
चूंकि जलेबी गरम -गरम ही अच्छी लगती है इसलिए बाकी मिठाइयों की तरह इसे स्टोर नहीं किया जाता। कुछ वर्षों पहले तक भारत के अधिकांश राज्यों में जलेबी सुबह ही मिलती है लेकिन लोगों की पसंद को देखते हुए अब कई जगह शाम को भी मिलने लगी है। अब तो जलेबी नाश्ते की थाली से इतर त्यौहार और खास मौकों का हिस्सा बन गयी है। इसी तरह दशहरे पर भी जलेबी का खास महत्त्व है। जलेबी का अस्तित्व भगवान राम के समय में भी था। पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान राम के समय में शशकुली नाम की एक मिठाई होती थी, जिसे अब जलेबी के नाम से जाना जाता है। इससे साफ है कि जलेबी की कहानी सदियों पुरानी है और ये बिलकुल अपनी काया की तरह घुमावदार भी है। तो चलिए आज इसी के बारे में गहराई से जानते हैं कि हमारे पूर्वजों ने जलेबी का स्वाद कब चखा था।
आपको बता दें कि जलेबी की जड़ें सिर्फ भारत से ही नहीं, बल्कि इसकी जड़ें दुनिया के दूसरे देशों से भी जुड़ी हैं। 10वीं शताब्दी में प्राचीन मध्य-पूर्व की गलियों में लोगों की जुबान पर बस एक ही मिठाई का नाम हुआ करता था और वो था ‘जुलाबिया' . इसी ‘जुलाबिया’ को भारत में जलेबी कहा जाता है। दरअसल जलेबी 10वीं शताब्दी के फारस की है। यहाँ से निकलकर भारत कैसे पहुंची और कैसे भारतीयों के दिलों पर राज करने लगी ये कहानी दिलचस्प है।
जलेबी की शुरुआत
'किताब-अल-तबीक़' नाम की पुस्तक में 'जलाबिया' नाम की मिठाई का उल्लेख मिलता है जिसका उद्भव पश्चिम एशिया में हुआ था। जानकारों के अनुसार जलेबी शब्द अरेबिक शब्द 'जलाबिया' या फारसी शब्द 'जलिबिया' से आया है। वहीं ईरान में ये 'जुलाबिया या जुलुबिया' के नाम से मिलती है। 10वीं शताब्दी की अरेबिक पाक कला किताब में 'जुलुबिया' बनाने की कई रेसिपीज़ का उल्लेख मिलता है। इतना ही नहीं जैन लेखक जिनासुर की पुस्तक 'प्रियंकरनरपकथा' में भी कुछ इसी तरह की मिठाई का उल्लेख मिलता है। इसके अलावा 17 वीं शताब्दी की एक पुस्तक 'भोजनकुटुहला' और संस्कृत पुस्तक 'गुण्यगुणबोधिनी' में भी जलेबी के बारे में लिखा गया है।
अब भारत कैसे जलेबी पहुंची ये भी जान लेते हैं। हिस्टोरियंस की माने तोमध्यकाल में जलेबी भारत में फ़ारसी और तुर्की व्यापारियों के साथ आई। इसके बाद से हमारे देश में भी इसे बनाया जाने लगा। भारत में जलेबी को कई लोग विशुद्ध भारतीय मिठाई मानने वाले भी हैं. शरदचंद्र पेंढारकर में जलेबी का प्राचीन भारतीय नाम कुंडलिका बताते हैं। इतना ही नहीं वे रघुनाथकृत ‘भोज कुतूहल' नाम के ग्रंथ का भी हवाला दिए हैं जिसमें जलेबी के बनाने की विधि का उल्लेख है। भारतीय मूल पर जोर देने वाले जानकार इसे ‘जल-वल्लिका' कहते हैं। चूंकि ये रस से भरी होती है इसी वजह से इसे यह नाम मिला और फिर इसका रूप जलेबी हो गया.
जलेबी के कितने नाम ?
जलेबी भारत के अमूमन राज्यों में बनती है, लेकिन अलग-अलग राज्यों में इसे अलग-अलग नामों से जाना जाता है. पश्चिम बंगाल में इसे 'चनार' तो मध्य प्रदेश के इंदौर में जलेबा कहा जाता है। इतना ही नहीं मध्य प्रदेश के कुछ जिलों में इसे मावा जंबी कहा जाता है तो वहीं हैदराबाद में खोवा जलेबी, आंध्र प्रदेश में इमरती या जांगिरी के नाम से भी जानते हैं।
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